Monday, April 21, 2014

लोकतंत्र का मेला - भाग १

मेला है भई मेला है,
प्रजातंत्र का मेला है,
पांच साल में आता है,
रंग अनेकों लाता है,
कुर्सी खाली हो जाती है,
लोगों को सौंप दी जाती है,
वोटों की दौड़ फिर लगती है,
कोई कलफ पहनकर आता है,
कोई नेता जी कहलाता है,
सब मंचों पे चढ़ जाते हैं,
हुंकार लगाये जाते हैं,
धर्मों को उठाया जाता है,
भगवान बुलाया जाता है,
पर, पर...
रोटी की बात नहीं उठती,
क्यों काम नहीं मिल पाते हैं,
क्यों खेत सूने हो जाते हैं,
ये क्यों नहीं पूछा जाता है,
ये क्यों नहीं पूछा जाता है- जब नारे पुकारे जाते हैं
जब वोट बटोरे जाते हैं,
लोकतंत्र का लोक हैं हम,
ये हम लोगों का मेला है,
समझने की ये बात ही है,
ये हम लोगों का मेला है,
मेला है भाई मेला है,
लोकतंत्र का मेला है...
-- मनु कंचन

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