Saturday, March 28, 2015

पानी की टंकी - लघु प्रेम कथा

दोनों हाथों से धकेलती वो पानी की उस टंकी को उस तंग रस्ते की ओर फिर ले गयी, इस उम्मीद में के शायद वो आज फिर दिखाई देगा। टंकी की रफ़्तार आधी हो गयी थी और उसके दिल की दुगनी। हर बार धक्का मारती, फिर रूकती खड़ी होती, पूरी गली पर एक नज़र घुमाती और फिर धक्का मारती। आधी गली पार हो चुकी थी, हाथ थोड़े टूटने लगे थे।  पर हाथों से ज़्यादा उस उम्मीद में दरार आने लगी थी। वो कुछ उदास मन से  झुक कर अगला धक्का मारने के लिए तैयार ही हुई थी के पीछे से आवाज़ आई "रुकिए मैं कर देता हूँ।" लड़के ने अपने हाथ टंकी पर टिकाये और धक्का देने लगा। देखते ही देखते गली पार हो गयी। वो लड़के की ओर देख कर मुस्कुरा ही रही थी के लड़का एकदम से खड़ा होकर बोला "२० रूपये दे दीजिये, आपके घर तक ले जाने के 40 और लगेंगे। आप दो गली छोड़कर रहती हैं न।"

--मनु कंचन 

Wednesday, March 25, 2015

हमने अंजाम देख लिया

आगाज़ से पहले ही हमने वो अंजाम देख लिया,
हमसे जो छुपाकर रखा था,
अपने क़त्ल होने का वो पैगाम देख लिया,
अब क़दमों को क्या समझाएं,
अब तो वो डगमगाएंगे,
वो तो चलती साँसों से डरते थे,
मुकाम-ए-अंजाम की उन रुकी साँसों से कैसे,
जाने कैसे ये रिश्ता निभा पाएंगे

-- मनु कंचन