Monday, June 23, 2014

वो निकली नौकरी करने थी

वो निकली काम/नौकरी करने थी,
जमाने से लड़कर आई है,
वो निकली कॉलेज पढ़ने थी,
ज़माने से भिड़कर आई है,
कुसूर उसको दूँ या समाज को,
या चौखट की सीमा के रिवाज़ को,
कुछ रवायतें समाज ऐसी बनाता है,
ज़ंजीरों को जैसे इश्क़ बताता है,
ना इश्क़ किया हमने पर इतना जानते हैं,
ज़ंजीरों को तो जानवर भी बुरा मानते हैं 


--मनु कंचन

Wednesday, June 4, 2014

घर की दरारें

घर की दरारें दिखाई नहीं जातीं,
दबी हुई बातें बताई नहीं जातीं,
दागी तसवीरें लगाई नहीं जातीं,
चेहरों पे जिनके कुछ निशान रह जाते हैं,
कहानियां उनकी फिर सुनाई नहीं जातीं 


--मनु कंचन