Thursday, March 27, 2014

मेरी जाति



गर्मियां चल रही थीं। आज के लिए चिलचिलाती धूप धरती के इस हिस्से पर अपना परचम लहरा चुकी थी। वह एक रिक्शे के इंतज़ार में था, आखिर पैदल चलना सबके बस का रोग नहीं। थोड़ी देर में एक रिक्शा आता दिखा। उसने हाथ हिलाते हुए आवाज़ लगाई "भैया"। लेकिन उस पर तो कोई बैठा था।  एक अंकल थे, लगभग ३८-४० साल के रहे होंगे। रिक्शा रुक गया। शायद अंकल ने कहा होगा। तभी अंकल ने पूछा "कहाँ, मेन रोड तक जाना है?"। वह बोला "जी अंकल "। अंकल ने बिना कुछ कहे बैठने के लिए जगह दे दी। सफ़र शुरू हो गया, था चाहे कुछ मिनटों का ही पर यादगार था। बातचीत शुरू हो गयी। एक दूसरे के बैकग्राउंड के बारे में प्रशन शुरू हुए।  बात चलते-चलते जाति पर आयी। अंकल ने पूछा "तुम किस जाति के हो" । वह बोला "अंकल, मुझे नहीं पता " । अंकल हँस कर बोले "मेरे पांच साल के बच्चे को पता है उसकी जाति का और तुम इतने बड़े और पढ़े लिखे होकर नहीं जानते"। उसने मुस्कुरा कर उत्तर दिया "अंकल, इंसान होना काफी नहीं"। अंकल ने कुछ जवाब नहीं दिया और न वो कुछ और बोला। शायद अब धूप से ज़यादा उनको एक दूसरे कि बातें चुभ रही थीं। 

मनु कंचन 


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