Tuesday, March 25, 2014

सफ़ेद चादर ओढ़े लोग

आज बगल वाले घर में सन्नाटा था या फिर ये कहिये कि आज शायद पूरा मोहल्ला ही चुप था।  जाने कैसे वो १० साल का बच्चा इस सन्नाटे को देख रहा था, आखिर वो था तो १० साल का बच्चा ही। उसके आस पास सब अपने रोज़मर्रा के कार्यों में लगे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वो भी वही रोज़ कि चीज़ें करना चाहता था, वही क्रिकेट खेलना, वही विडियो गेम पे लड़ना, पर कैसे करे जिनके साथ वो खेलता था वो तो चले गए थे। आखिरी बार शायद उसने अपने दोस्तों को दशहरे की दोपहर को देखा था।  अरे नहीं आखिरी बार का मंज़र तो वो भूल ही नहीं सकता। कैसे भूलेगा चार लोगों को, हाँ लोगों को, सफ़ेद चादर में लिपटे घर के बाहर के आँगन में ज़मीन पर पड़े। आस पास सब सफ़ेद कपड़े पहने बैठे थे, दो लोग छाती पीट रहे थे और वो अपने भाई के साथ जाता हुआ उस मंज़र को दिल में बैठा रहा था।

मनु कंचन 

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