Saturday, April 25, 2015

'नो एंट्री' का बोर्ड

हाथ में कागज़ लिए रास्ता पूछ रहा था लोगों से उस घर तक जाने का। अर्सों बाद आज कुछ पुराने चेहरों से मिलने का एक रोमांच तो था ही पर साथ ही एक डर भी के जाने वो चहरे उसे पहचानेंगे भी या नहीं। समाज और उसमें रहने वाले लोग मॉडर्न तो हो गए हैं लेकिन आज भी घर-परिवार के नए रिश्तों को जोड़ने में धर्म-जाति की कई बंदिशें लगी हैं। ऐसा लगता है मानो इस आधुनिकीकरण को घर-परिवार और समाज के कुछ क्षेत्रों में ही प्रवेश मिला है। घर-परिवार में नए रिश्तों को जोड़ने की प्रक्रिया आज भी इसके लिए 'नो एंट्री' का बोर्ड लिए खड़ी है और जहाँ कहीं ये आधुनिकीकरण गलती से प्रवेश कर भी लेती है, वहां तो उन रिश्तों के लिए ही मानो जैसे 'नो एंट्री' का बोर्ड लग जाता है।
खैर वो ये सोचते हुए लोगों के बताये रास्ते पर चला जा रहा था इस उम्मीद में के शायद आज ये 'नो एंट्री' का बोर्ड ना मिले। कुछ देर चलने के बाद वह दरवाज़ा दिखने लगा, जिसपर उसके पिताजी के नाम की छोटी सी तख्ती लटकी थी। उसका मन उस तख्ती और उसपर लिखे नाम को देखकर ही प्रसन्न हो गया। उसके हाथ में पकड़ा वह पता अभी तक सिर्फ एक कल्पना ही था, पर उस तख्ती ने इस कल्पना को हकीकत का एक रूप देना शुरू कर दिया था। दरवाज़े पर पहुंचकर उसने घंटी बजाई। दरवाज़ा खुला और सामने उसके पिता खड़े हो गए। इससे पहले के वह कुछ कह पाता, पिता ने ज़ोर का एक थप्पड़ मार दिया और एक मिनट बाद वहीँ गिर गए। उसने गिरते पिता को संभाल तो लिया, पर यह समझ नहीं पाया के वो 'नो एंट्री' का बोर्ड है अब है या नहीं।
-- मनु कंचन

1 comment:

DINESH said...

what do you want to say in this article.