Monday, February 24, 2014

इक आग

इक आग दिखी है,
जाने कब से लगी है,
जाने कितने जले हैं,
जाने कितने जलेंगे,
जाने कितने थे  मेरे,
जाने कितने थे उनके,
बस इतना पता है,
इंसान ही मरे हैं,
चाहे मेरे या उनके,

इक आग दिखी है,
जाने कब से लगी है,
जिसने है लगाईं,
जब थी ये लगाईं,
कैसे हाथ न कांपे,
वो कैसे रात को सोया,
वो कैसे दिन को जागे,

इक आग दिखी है,
जाने कब से लगी है,
मैं इसका हिस्सा न हूँ,
ना ही बन पाउँगा,
मैंने कितना बोला,
मैं बहुत चिलाया,
इक आग दिखी है,
जाने कब से लगी है...

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