छुट्टी का दिन था| सो आज उसने घूमने का तय किया| पास वाली मेन रोड के बस स्टैंड से लोकल बस पकड़ी| थोड़ी दूर बस पहुंची ही थी कि पता चला पूरा शहर ही घूमने निकला है, बस फर्क इतना था कि शहर अपनी-अपनी गाड़ियों में था और वो बस में| बस बुरी नहीं थी, पर अगर बैठने को जगह न मिले तो मेट्रो ट्रैन भी अच्छी नहीं लगती| बस की छत को सहारा देते पोल से लग कर खड़ा कुछ सोच ही रहा था कि पास वाले फूटपाथ पर चलते लोगों कि हसीं सुनाई दी| सब पीछे देख रहे थे| मुड़ कर देखा तो एक कुत्ता, देखने में आवारा लग रहा था, पुलिस कांस्टेबल के पीछे भाग रहा था और कांस्टेबल आगे आगे अपने आप को बचाते हुए| कांस्टेबल के हाथ में डंडा था पर फिर भी वो डर कर भाग रहा था कुत्ता से, कुत्ता नहीं| आस पास के लोगों की तरह , यह देख कर, वह भी हसें बिना रह नहीं पाया| शायद सब की तरह उसने भी यही सोचा चलो कोई तो है हम लोगों के बीच जो कुछ देर के लिए ही सही पर सरकारी तंत्र को हिला और दौड़ा सकता है| फिलहाल वह हंस रहा था पर अंत क्या होगा न वो जानता था, न फूटपाथ के वो लोग और न ही शायद वो कुत्ता|
मनु कंचन
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