"नहीं, मैं लड़की हूँ" वह ५-६ (5-6) साल की लड़की अपनी क्षमता से कुछ तेज़ आवाज़ में अपने मामाजी से बोल रही थी। लोगों से खचाखच भरे उस ट्रेन के डब्बे में, उस लड़की की आवाज़ कहीं दब सी गयी थी। मैं उनकी सीट के बगल में खड़ा था। आखिर आरक्षित डब्बे में साधारण वर्ग की टिकट लेकर चढ़ने वाले को खड़े होने की ही तो जगह मिलेगी। लड़की के मामाजी २०-२२ साल का एक जवान लड़का ही था। मामाजी लड़की को थोड़ा तंग करने के भाव से बोले "पर आपके बाल तो लम्बे नहीं हैं, न ही आपके कान या नाक में कुछ डाला हुआ है।" मामाजी कह तो सही रहे थे, लड़की के बाल बॉयकट के थे और न तो उसके कान बिने हुए थे और ना ही नाक। "यहाँ आस पास देखो किसी भी लड़की के बाल छोटे नहीं हैं और सबने नाक और कान में कुछ पहना हुआ है।" इससे पहले की लड़की आस पास देखती मैंने ही आस पास बैठी लड़कियों और महिलाओं पे नज़र घुमा दी। मामाजी इसमें भी सही थे, सब लड़कियों के बाल लम्बे, नाक और कान बिने हुए थे।
वह लड़की रोते हुए अपनी माँ के पास चली गयी और बोली "माँ, मैं लड़की हूँ ना।" यूँ लगा मानो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए फ़रियाद कर रही हो और एक सहारा मांग रही हो। माँ बोली "हाँ, हाँ तू है।" फिर अपने भाई की तरफ देख कर बोली "बस बहुत हो गया।" लड़की चुप हो गई, पर शायद संतुष्ट नहीं। खैर फिर भी लड़की को तो शायद उसका सहारा मिल गया पर मैं इन बालों की उलझन में फँस गया। इस नई हकीकत को सत्यापित करने के लिए मैंने फिर आस पास निगाह घुमाई, तो बस लम्बे बाल, बिने हुये कान और नाक ही दिखाई दिए।
वह लड़की रोते हुए अपनी माँ के पास चली गयी और बोली "माँ, मैं लड़की हूँ ना।" यूँ लगा मानो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए फ़रियाद कर रही हो और एक सहारा मांग रही हो। माँ बोली "हाँ, हाँ तू है।" फिर अपने भाई की तरफ देख कर बोली "बस बहुत हो गया।" लड़की चुप हो गई, पर शायद संतुष्ट नहीं। खैर फिर भी लड़की को तो शायद उसका सहारा मिल गया पर मैं इन बालों की उलझन में फँस गया। इस नई हकीकत को सत्यापित करने के लिए मैंने फिर आस पास निगाह घुमाई, तो बस लम्बे बाल, बिने हुये कान और नाक ही दिखाई दिए।
मनु कंचन
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