सूर्य की किरणें आज तीखी लग रही थीं, मानो एक नाराज़गी ज़ाहिर कर रही हों। बोल रही हों "सुनो आज वो नाराज़ हैं।" सूर्य नाराज़ है, पर क्यों। इसी पे चिंतन कर रहा था कि विज्ञान की वह बात याद आ गयी "सूर्य भी एक तारा है।" यूँ लगा जैसे सूर्य की कहानी ने नया मोड़ ले लिया हो। सूर्य एक तारा है!!!!! पर उसे तारों की श्रेणी में रखना तो शायद कल्पना में भी संभव न होगा। विज्ञान जाने कौन से पैमाने लगाता है। विज्ञान ये समझता नहीं कि तारे टिमटिमाते हैं और सूर्य, वो तो जलता है, तेज़ बहुत तेज़। यूँ लगा जैसे इतना नज़दीक होना ही इसके लिए एक अभिशाप बन गया हो। कैसी विडम्बना है अपनों से जाने कितनी दूर खड़ा है और जिनके करीब खड़ा है वो इसको इसकी पहचान ही नहीं देते। जाने फिर भी कैसे ये उन्ही के लिए हर पल जलता है, हर पर उन्हें ही रोशनी देता है। ज़रूर अपने अस्तित्व को खोने की आग ही इसे हर पल जला रही होगी।
मनु कंचन
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