वो निकली काम/नौकरी करने थी,
जमाने से लड़कर आई है,
वो निकली कॉलेज पढ़ने थी,
ज़माने से भिड़कर आई है,
कुसूर उसको दूँ या समाज को,
या चौखट की सीमा के रिवाज़ को,
कुछ रवायतें समाज ऐसी बनाता है,
ज़ंजीरों को जैसे इश्क़ बताता है,
ना इश्क़ किया हमने पर इतना जानते हैं,
ज़ंजीरों को तो जानवर भी बुरा मानते हैं
--मनु कंचन
जमाने से लड़कर आई है,
वो निकली कॉलेज पढ़ने थी,
ज़माने से भिड़कर आई है,
कुसूर उसको दूँ या समाज को,
या चौखट की सीमा के रिवाज़ को,
कुछ रवायतें समाज ऐसी बनाता है,
ज़ंजीरों को जैसे इश्क़ बताता है,
ना इश्क़ किया हमने पर इतना जानते हैं,
ज़ंजीरों को तो जानवर भी बुरा मानते हैं
--मनु कंचन
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